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दोनों पैर गंवाए, फिर भी कहा मैं पीड़ित नहीं फाइटर हूं… सदानंद मास्टर की राज्यसभा तक पहुंचने की कहानी

नई दिल्ली:

10 जुलाई की शाम को अचानक सदानंद मास्टर के पास फ़ोन आया कि प्रधानमंत्री आपसे बात करना चाहते हैं. आप फ्री रहें… कुछ देर बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लाइन पर थे और बोले सदानंद जी कैसे हो. मैं आपको एक नई ज़िम्मेदारी देना चाहता हूं. दूसरी तरफ से सदानंद बोले आप जो ज़िम्मेदारी देंगे निष्ठा पूर्वक निभाएंगे. लेकिन उनको ये नहीं बताया गया कि उनको राज्यसभा भेजा जाएगा. इस बातचीत के दो दिन बाद केरल के बीजेपी अध्यक्ष राजीव चंद्रशेखर ने उनको बताया कि सरकार आपको राज्यसभा भेज रही है. 13 तारीख़ को उनके नाम की घोषणा हुई. केरल के बीजेपी उपाध्यक्ष मास्टर सदानंद ने 2016 में सबका ध्यान तब खींचा जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक चुनावी सभा में मास्टर सदानंद का हाथ उठाकर बोले ये हमारा संघर्ष करने वाला कार्यकर्ता. ऐसे कार्यकर्ताओं के सहारे ही केरल में बीजेपी बढ़ेगी उसके 9 साल बाद मास्टर सदानंद को राज्यसभा भेजा गया.

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मास्टर सदानंद का पूरा परिवार CPI M का कॉडर है लेकिन वो बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद से प्रभावित होकर कॉलेज के वक्त ही RSS से जुड़ गए. साल 2020 में जब RSS से रिटायर हुए तब उनको केरल बीजेपी में ज़िम्मेदारी मिली. अभी वो केरल बीजेपी में उपाध्यक्ष के तौर पर राजनीतिक कार्य कर रहे हैं.

केरल की राजनीतिक हिंसा में दोनों पैर काटे गए 

केरल में राजनीतिक हिंसा का सबसे बड़े गढ़ कन्नूर में मास्टर सदानंद RSS की ज़िम्मेदारी संभाल रहे थे. इसी के वजह से उनका राजनीतिक विरोध सीधे तौर पर CPI (M) से था. साल1994 में कॉलेज के सांस्कृतिक गतिविधियों के दौरान उनपर कथित तौर पर CPI के स्टूडेंट विंग ने हमला किया और सरे आम उनके दोनों पैर कथित तौर पर काट दिए गए.

मास्टर सदानंद कहते हैं कि पैर कट गए लेकिन RSS के प्रचार प्रसार का काम केरला में नहीं छोड़ा और न ही मैं अपने को कभी राजनीतिक हिंसा का पीड़ित मानता हूं. मैंने हमेशा कहा कि मैं हिंसा का पीड़ित नहीं हूं मैं फाइटर हूं. 

बीजेपी केरल में अच्छा करने जा रही है

केरल में बीजेपी क्यों नहीं अच्छा कर पा रही है? इस सवाल पर उन्होंने कहा बीजेपी ने पिछले चुनाव में बीस फ़ीसदी के क़रीब वोट बैंक का शेयर था. बीजेपी आने वाले समय में अच्छा करने जा रही है. वो कहते हैं केरल का विकास किसी राजनीतिक पार्टी या सरकार की नहीं बल्कि केरल शुरु से ही अपने विकास के लिए जागरुक रही है. भाषा के मुद्दे पर उनका कहना है कि केरल में कोई विरोध नहीं है हिन्दी का. हिन्दी राष्ट्र भाषा हैं हम उसे मानते हैं.

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