छत्तीसगढ़राजनाँदगाँव

ड्रोन दीदी योजना: संघर्ष से सफलता तक, डोंगरगढ़ की शांति बनीं ड्रोन पायलट, हजारों किसानों की बदली किस्मत

नमो ड्रोन दीदी योजना के तहत देशभर की हजारों महिलाएं ड्रोन संचालन का प्रशिक्षण ले रही हैं। डोंगरगढ़ की शांति विश्वकर्मा भी अपनी मेहनत और लगन से ड्रोन पायलट बनीं और अब किसानों की मदद कर रही हैं।

संघर्ष से सफलता तक: ड्रोन दीदी शांति विश्वकर्मा की प्रेरणादायक कहानी

राजनांदगांव। सफलता पाने के लिए दृढ़ संकल्प और कड़ी मेहनत आवश्यक होती है। कभी आर्थिक तंगी से जूझने वाली डोंगरगढ़ की शांति विश्वकर्मा आज ड्रोन पायलट बनकर अपने सपनों को नई उड़ान दे रही हैं। उनका जीवन संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी।

नवमी कक्षा पास करने के बाद परिवार ने उनकी शादी कर दी। शांति का सपना शिक्षिका बनने का था, लेकिन परिस्थितियों के कारण यह पूरा नहीं हो सका। हालांकि, उन्होंने शादी के बाद भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और विज्ञान (बीएससी) में स्नातक की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अपने स्तर पर पापड़, बड़ी, मुरकु बनाने का व्यवसाय शुरू किया और धीरे-धीरे इसे बाजार तक पहुंचाया। इस पहल में उन्होंने अन्य महिलाओं को भी जोड़ा, जिससे कई परिवारों को आजीविका मिली और व्यापार को भी बढ़ावा मिला।

अब, शांति ड्रोन पायलट बनकर किसानों की मदद कर रही हैं। वे खेतों में खाद और कीटनाशकों का छिड़काव कर न केवल अपनी आजीविका कमा रही हैं, बल्कि किसानों को भी आधुनिक तकनीक का लाभ पहुंचा रही हैं। हर माह 20 से 22 हजार रुपये की कमाई कर वे अपने बच्चों को बेहतर शिक्षा प्रदान कर रही हैं।

“ड्रोन दीदी” के नाम से पहचान, पति का मिला साथ

शांति विश्वकर्मा आज “ड्रोन दीदी” के नाम से मशहूर हैं। उनके जीवन को यदि एक शब्द में संजोया जाए, तो वह होगा—संघर्ष और सेवा। कठिनाइयों के बावजूद, उन्होंने हार नहीं मानी और अपने कार्यों की बदौलत जिले में एक अलग पहचान बनाई। वे सैकड़ों किसानों के खेतों में ड्रोन के माध्यम से खाद और कीटनाशकों का छिड़काव कर रही हैं।

शांति कहती हैं, “संघर्ष और जीवन साथ-साथ चलते हैं। मैंने बचपन में शिक्षिका बनने का सपना देखा था, लेकिन नवमी के बाद शादी हो गई। पढ़ाई का जुनून कभी खत्म नहीं हुआ, इसलिए सपनों को पूरा करने की कोशिश जारी रखी। इस सफर में मेरे पति कुलदीप विश्वकर्मा ने मेरा पूरा साथ दिया, जिससे मैं बीएससी (बायोलॉजी) तक की पढ़ाई पूरी कर सकी।”

“बाजार में जमा रही अपनी धाक”

शांति ने आगे कहा, “बड़ी से बड़ी मुश्किलों से भी लड़ा जा सकता है। पहला कदम उठाने पर रास्ते खुद बनते जाते हैं।” इसी सोच के साथ उन्होंने 15 महिलाओं के साथ मिलकर “मां वैभव लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह” की स्थापना की और पापड़, बड़ी, मुरकु निर्माण का काम शुरू किया। उनके अचार और अन्य उत्पादों की बाजार में अच्छी मांग है।

समय के साथ उनकी मेहनत रंग लाई, और उन्होंने “लखपति दीदी” की उपाधि प्राप्त की। कृषि क्षेत्र में योगदान देने पर गर्व महसूस करते हुए शांति कहती हैं, “किसान हमारे अन्नदाता हैं, और उनकी मदद करना मेरे लिए सौभाग्य की बात है। मैं चाहती हूं कि अधिक से अधिक किसानों को ड्रोन तकनीक का लाभ मिले, जिससे खेती में कम मेहनत में ज्यादा उत्पादन संभव हो सके।”

शांति विश्वकर्मा का यह सफर संघर्ष, मेहनत और सफलता की प्रेरणादायक कहानी है, जो हर महिला को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है।

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