आजादी का नया सूर्योदयः बस्तर के 29 गांवों में पहली बार फहरा तिरंगा

बीजापुर । बस्तर के 29 गांवों में पहली बार तिरंगा फहराने की अत्यंत महत्वपूर्ण और आशावादी खबर ने पूरे देश का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
यह खबर सिर्फ एक सूचना मात्र नहीं है, बल्कि दशकों से नक्सलवाद की भयावह छाया में जी रहे बस्तर संभाग के बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों में आ रहे एक ऐतिहासिक बदलाव की कहानी बयां करती है।
स्वतंत्रता दिवस के पावन अवसर पर, इन तीन जिलों के कुल 29 ऐसे गांवों में पहली बार राष्ट्रीय ध्वज तिरंगा शान से फहराया गया, जहाँ अब तक लाल झंडे की प्रतीकात्मक उपस्थिति ही देखी जाती थी।
यह घटना बस्तर के बदलते परिदृश्य, राज्य और केंद्र सरकार की दृढ़ इच्छाशक्ति, सुरक्षा बलों के अथक प्रयासों और सबसे महत्वपूर्ण, इन क्षेत्रों के आम ग्रामीणों के जीवन में आ रही नई उम्मीद की एक जीवंत मिसाल है।
बस्तर संभाग विशेषकर बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिले दशकों से वामपंथी उग्रवाद, जिसे आमतौर पर नक्सलवाद के नाम से जाना जाता है, का गढ़ रहा है। ये क्षेत्र घने जंगल, दुर्गम भौगोलिक परिस्थितियां और जनजातीय आबादी की बहुलता के कारण नक्सलियों के लिए छिपने और अपनी गतिविधियों को अंजाम देने का एक सुरक्षित ठिकाना बन गए थे।
माओवादियों ने इन क्षेत्रों में अपनी समानांतर सत्ता स्थापित कर रखी थी, जहाँ उनका फरमान ही कानून माना जाता था। स्कूल बंद कर दिए जाते थे, सड़कें नहीं बनने दी जाती थीं, और विकास परियोजनाओं को बाधित किया जाता था। ग्रामीणों को अपनी मर्जी के खिलाफ नक्सलियों का साथ देना पड़ता था, और ऐसा न करने पर उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने पड़ते थे।
अपहरण, हत्या, जबरन वसूली और हिंसा की वारदातें आम बात थीं। इन गांवों में राष्ट्रीय प्रतीकों और राष्ट्रीय भावनाओं का खुलकर प्रदर्शन करना खतरे से खाली नहीं था। अक्सर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस जैसे राष्ट्रीय पर्वों पर भी, माओवादियों के दबाव के चलते इन गांवों में तिरंगा फहराना संभव नहीं हो पाता था, और कई बार तो उनकी उपस्थिति के कारण लाल झंडे फहराए जाते थे, जो उनके अपने विचारधारा का प्रतीक था। इस प्रकार इन गांवों के लोग आजादी के बाद भी एक तरह की आंतरिक गुलामी और डर के साये में जी रहे थे।
15 अगस्त 2025 को इन 29 गांवों में तिरंगा फहराया जाना सिर्फ एक प्रतीकात्मक घटना नहीं है, बल्कि यह दशकों के संघर्ष और दमन से मुक्ति का प्रतीक है। यह ग्रामीणों के लिए अपनी पहचान, अपने देश और अपने भविष्य को फिर से स्थापित करने का अवसर है। उक्त सभी गांव बीजापुर, नारायणपुर और सुकमा जिलों में फैले हुए हैं, और इनमें से कई गांव ऐसे हैं जो पहले नक्सली गतिविधियों के केंद्र बिंदु माने जाते थे, जिनमें बीजापुर जिले के कोंडापल्ली, जीड़पल्ली, जीड़पल्ली-2, वाटेवागु, कर्रेगुट्टा, पिड़िया, गुंजेपर्ती, पुजारीकांकेर, भीमारम, कोरचोली एवं कोटपल्ली, नारायणपुर जिले के गारपा, कच्चापाल, कोडलियार, कुतूल, बेड़माकोट्टी, पदमकोट, कांदूलनार, नेलांगूर, पांगुड़, होरादी एवं रायनार और सुकमा जिले के तुमालपाड़, रायगुडे़म, गोल्लाकुंडा, गोमगुड़ा, मेटागुड़ा, उसकावाया और नुलकातोंग शामिल हैं। इन गांवों में तिरंगा फहराने का मतलब है कि अब यहाँ राज्य का शासन स्थापित हो चुका है और माओवादियों का प्रभाव कम हो गया है। यह सुरक्षा बलों की कड़ी मेहनत, स्थानीय प्रशासन के साथ समन्वय और जनजातीय समुदायों के विश्वास को जीतने के प्रयासों का सीधा परिणाम है। इस ऐतिहासिक उपलब्धि के पीछे कई कारकों का योगदान है, जिनमें सरकार ने नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में सुरक्षा बलों की तैनाती बढ़ाई है और रणनीतिक ऑपरेशन चलाए हैं। नए सुरक्षा शिविरों की स्थापना, जैसे कि नारायणपुर में आईटीबीपी के 4 कैंप खोले जाने का जिक्र है, माओवादियों के गढ़ों में प्रवेश करने और उन्हें कमजोर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इन शिविरों से सुरक्षा बलों को न केवल दूरदराज के क्षेत्रों तक पहुंचने में मदद मिलती है, बल्कि वे ग्रामीणों के साथ बेहतर संबंध भी स्थापित कर पाते हैं।
इसके साथ ही विकास कार्य और सरकारी योजनाओं का विस्तार किया गया है, क्योंकि सरकार मानती है कि केवल सैन्य अभियान ही पर्याप्त नहीं हैं। सरकार ने इन क्षेत्रों में विकास कार्यों को प्राथमिकता दी है, जिसके तहत नियद नेल्लानार योजना के अन्तर्गत सड़क निर्माण, बिजली, पानी और स्वास्थ्य सेवाओं का विस्तार शामिल है। प्रधानमंत्री आवास योजना, मनरेगा जैसी योजनाएं सीधे ग्रामीणों तक पहुंचाई जा रही हैं, जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो रहा है और वे मुख्यधारा से जुड़ रहे हैं। इसके साथ ही पिछले 5 महीनों में बीजापुर जिले में 11 कैंपों की स्थापना की गई है, जो सुरक्षा और विकास दोनों के लिए महत्वपूर्ण हैं। स्थानीय आबादी का विश्वास जीतना सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। सुरक्षा बलों और प्रशासन ने ग्रामीणों का विश्वास जीतने के लिए कई कदम उठाए हैं। स्वास्थ्य शिविर, शिक्षा के अवसर प्रदान करना और रोजगार के अवसर पैदा करना, ग्रामीणों को माओवादियों से दूर ले जाने में मदद कर रहे हैं। ग्रामीणों को यह महसूस कराया जा रहा है कि सरकार उनके साथ है और उनके बेहतर भविष्य के लिए प्रतिबद्ध है।
सुरक्षा बलों के लगातार दबाव और नक्सली कैडरों के आत्मसमर्पण के कारण नक्सली नेतृत्व कमजोर हुआ है। कई महत्वपूर्ण नक्सली नेताओं को मार गिराया गया है या उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है, जिससे उनकी संगठनात्मक क्षमता कमजोर हुई है। सरकार की आकर्षक आत्मसमर्पण नीतियों ने भी कई नक्सलियों को मुख्यधारा में लौटने के लिए प्रेरित किया है, जिससे नक्सली संगठन कमजोर हुए हैं। इन 29 गांवों में तिरंगा फहराना बस्तर के लिए एक नए युग की शुरुआत का प्रतीक है। इसके कई सकारात्मक निहितार्थ हैं। सबसे पहले यह दर्शाता है कि इन क्षेत्रों में शांति और सुरक्षा की स्थिति में सुधार हुआ है। इससे लोगों को डर के बिना जीने और अपने दैनिक जीवन को सामान्य रूप से चलाने का अवसर मिलेगा। जिन क्षेत्रों में पहले नक्सली हस्तक्षेप के कारण विकास असंभव था, अब वहां सड़क, बिजली, पानी और अन्य बुनियादी सुविधाओं का विस्तार हो सकेगा। यह ग्रामीणों के जीवन में प्रत्यक्ष सुधार लाएगा। स्कूलों और स्वास्थ्य केंद्रों का खुलना ग्रामीणों के लिए शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच सुनिश्चित करेगा, जिससे उनकी अगली पीढ़ी का भविष्य उज्ज्वल होगा। शांति और विकास से स्थानीय अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिलेगा। कृषि, वनोपज और लघु उद्योगों को प्रोत्साहन मिलेगा, जिससे ग्रामीणों के लिए रोजगार के नए अवसर पैदा होंगे। इन गांवों में तिरंगा फहराना राष्ट्रीय भावना और एकता को मजबूत करता है। यह ग्रामीणों को देश के मुख्यधारा से जोड़ता है और उन्हें अपनी भारतीय पहचान पर गर्व करने का अवसर देता है। बस्तर अपनी प्राकृतिक सुंदरता और समृद्ध आदिवासी संस्कृति के लिए जाना जाता है। शांति स्थापित होने से पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है, जिससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को और गति मिलेगी।
कर्रेगुट्टा सहित बस्तर के 29 गांवों में आजादी के बाद पहली बार तिरंगा फहराना सिर्फ एक खबर नहीं, बल्कि एक ऐतिहासिक मील का पत्थर है। यह दर्शाता है कि दशकों के संघर्ष और हिंसा के बाद, बस्तर एक नए सवेरे की ओर बढ़ रहा है। यह घटना सुरक्षा बलों के त्याग, सरकार की प्रतिबद्धता और सबसे बढ़कर, इन क्षेत्रों के आम ग्रामीणों की आशा और धैर्य का प्रतीक है। साथ ही यह एक उदाहरण है कि दृढ़ इच्छाशक्ति और समन्वित प्रयासों से किसी भी चुनौती का सामना किया जा सकता है। आने वाले समय में, यह देखना महत्वपूर्ण होगा कि कैसे इन क्षेत्रों में शांति और विकास की इस नई किरण को एक स्थायी और उज्ज्वल भविष्य में बदला जाता है। यह सिर्फ बस्तर के लिए नहीं, बल्कि पूरे भारत के लिए एक प्रेरणादायक कहानी है, जो दिखाती है कि कैसे विश्वास, दृढ़ता और राष्ट्रीय भावना के साथ सबसे कठिन बाधाओं को भी पार किया जा सकता है। यह वास्तव में बदलते बस्तर की एक नई और सच्ची तस्वीर है।