37 लाख की कमाई, लेकिन 1 करोड़ से ज्यादा खर्च! 165 गुना अधिक संपत्ति जुटाने वाले अधिकारी को 5 साल की कैद
छापे के दौरान कुल 7,16,080 रुपये नकद, आभूषण और अचल संपत्ति के दस्तावेज बरामद हुए। कुल 1 करोड़ 41 लाख 15 हजार 340 रुपये की संपत्ति जब्त की गई। जांच के दौरान, ज्ञात स्रोतों से अधिक संपत्ति पाए जाने पर आरोपी को अपना पक्ष रखने का अवसर दिया गया था।

प्रमुख बिंदु:
- आरोप था कि आरोपी ने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की।
- षड्यंत्र रचकर संपत्ति को सह-आरोपित का बताने का प्रयास किया।
- अदालत ने 5 साल की कैद और 10 हजार रुपये का अर्थदंड लगाया।
अंबिकापुर: आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने के मामले में विशेष न्यायाधीश (भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम) ममता पटेल की अदालत ने नागरिक आपूर्ति निगम, सूरजपुर के तत्कालीन सहायक प्रबंधक रविंद्रनाथ सिंह (63) को पांच साल के कारावास और 10 हजार रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई है। अर्थदंड न भरने की स्थिति में उन्हें अतिरिक्त कारावास भुगतना होगा। इस मामले में उनके भतीजे सुधीर कुमार सिंह को भी नामजद आरोपी बनाया गया है। वह फरार है, और उसके खिलाफ स्थायी गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया है।
पूरा मामला:
अतिरिक्त लोक अभियोजक विवेक सिंह के अनुसार, एंटी करप्शन ब्यूरो की टीम ने नागरिक आपूर्ति निगम, सूरजपुर में पदस्थ तत्कालीन सहायक प्रबंधक रविंद्रनाथ सिंह के अंबिकापुर स्थित आवास पर छापा मारा था। आरोप था कि उन्होंने आय से अधिक संपत्ति अर्जित की और आपराधिक षड्यंत्र के तहत उसे अपने भतीजे सुधीर कुमार सिंह की संपत्ति बताने का प्रयास किया। इसी आधार पर सुधीर कुमार सिंह (कनिष्ठ सहायक, नागरिक आपूर्ति निगम) को भी नामजद आरोपी बनाया गया। उनकी फरारी के चलते अदालत में केवल रविंद्रनाथ सिंह के खिलाफ अभियोग पत्र प्रस्तुत किया गया।
165 प्रतिशत अधिक संपत्ति प्रमाणित
न्यायालय की सुनवाई में यह सिद्ध हुआ कि आरोपी की सभी ज्ञात स्रोतों से कुल आय 37 लाख 83 हजार रुपये थी, जबकि इस अवधि में उन्होंने 1 करोड़ 4 लाख 72 हजार 703 रुपये खर्च किए। इस तरह 66 लाख 24 हजार 759 रुपये की संपत्ति का कोई वैध स्रोत नहीं था। यह उनकी कुल आय का 175 प्रतिशत अधिक था। 10 प्रतिशत की छूट देने के बावजूद, 165 प्रतिशत अधिक संपत्ति का हिसाब नहीं दिया जा सका, जिससे इसे अनुपातहीन संपत्ति की श्रेणी में माना गया।
न्यायालय की टिप्पणी:
अदालत ने कहा कि आय से अधिक संपत्ति भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है, जिसे हतोत्साहित किया जाना चाहिए। आरोपी की ओर से यह तर्क दिया गया कि वह विचारण में नियमित रूप से उपस्थित रहा और उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है, इसलिए उसे कम सजा दी जाए।
हालांकि, न्यायालय ने पाया कि आरोपी ने अपने स्वजनों के नाम पर संपत्ति अर्जित की, विभाग को इसकी सूचना नहीं दी और अपनी संपत्ति को वैध ठहराने के लिए संदेहास्पद प्रयास किए। ऐसे में न्यायिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए उन्हें उचित दंड दिया जाना आवश्यक है।सजा का विवरण:
न्यायालय ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 13(1)(ई) सहपठित धारा 13(2) के तहत पांच साल के कठोर कारावास और 10,000 रुपये के अर्थदंड की सजा सुनाई। यदि आरोपी अर्थदंड का भुगतान नहीं करता है, तो उसे छह महीने का अतिरिक्त कठोर कारावास भुगतना होगा।