Delimitation Row: परिसीमन के खिलाफ आज चेन्नई में विपक्ष का शक्ति प्रदर्शन, CM स्टालिन की अगुवाई में अहम बैठक
परिसीमन विवाद: डीएमके ने विपक्षी दलों की चेन्नई में बुलाई बैठक, कई मुख्यमंत्री होंगे शामिल, भाजपा ने बताया भ्रामक नाटक

मुख्य बातें:
- बैठक में सीएम पिनाराई विजयन, रेवंत रेड्डी और भगवंत मान समेत कई नेता शामिल हो सकते हैं।
- भाजपा नेता के. अन्नामलाई ने इस बैठक को ‘भ्रामक नाटक’ बताया।
तमिलनाडु की सत्तारूढ़ डीएमके ने परिसीमन (Delimitation Row) के मुद्दे पर आज (22 मार्च) राज्यों की पहली बैठक बुलाई है, जिसमें विपक्षी दलों के नेता शामिल होंगे। मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इस बैठक को एक आंदोलन की शुरुआत बताया, जो निष्पक्ष परिसीमन सुनिश्चित कर देश के भविष्य को आकार देगा। हालांकि, पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने इस बैठक से खुद को अलग कर लिया है।
बैठक में शामिल हो सकते हैं ये नेता
इस बैठक में केरल के मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन, तेलंगाना के मुख्यमंत्री रेवंत रेड्डी, पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान, शिरोमणि अकाली दल के कार्यकारी अध्यक्ष बलविंदर सिंह भुंडर और इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग केरल के महासचिव पी.एम.ए. सलाम के शामिल होने की उम्मीद है। इसके अलावा, कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार भी बैठक में शिरकत कर सकते हैं। एमके स्टालिन ने विपक्षी दलों के मुख्यमंत्रियों को बैठक में आमंत्रित किया है, जिनमें केरल, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पंजाब शामिल हैं।
भाजपा ने बैठक को बताया ‘भ्रामक नाटक’
इस बैठक को लेकर तमिलनाडु भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई ने इसे एक ‘भ्रामक नाटक’ करार दिया। उन्होंने सोशल मीडिया पोस्ट में कहा कि 22 मार्च को जब सीएम स्टालिन परिसीमन को लेकर यह नाटक करेंगे, तब उन्हें अपने गठबंधन सहयोगियों को डीएमके मंत्री टी.एम. अनबरसन का भाषण भी सुनाना चाहिए। अन्नामलाई ने आरोप लगाया कि डीएमके नेताओं ने उत्तर भारतीयों के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणियां की हैं और एक वीडियो क्लिप साझा किया, जिसमें राज्य मंत्री अनबरसन को उत्तर भारत की जनसंख्या वृद्धि पर विवादास्पद टिप्पणी करते हुए देखा जा सकता है।
नई शिक्षा नीति पर तमिलनाडु और केंद्र के बीच तनाव
तमिलनाडु सरकार और केंद्र सरकार के बीच पिछले कुछ महीनों से नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) को लेकर विवाद जारी है। स्टालिन सरकार का आरोप है कि केंद्र सरकार तमिलनाडु में जबरदस्ती हिंदी थोपने की कोशिश कर रही है। उनका कहना है कि नई शिक्षा नीति क्षेत्रीय भाषाओं की तुलना में हिंदी को प्राथमिकता देती है, जिससे राज्य की स्वायत्तता और भाषाई विविधता प्रभावित होगी। तमिलनाडु सरकार दो-भाषा नीति का पालन करती है, जिसमें तमिल और अंग्रेजी प्रमुख भाषाएं हैं।