अगर Manoj Kumar न होते, तो Dharmendra कभी नहीं बन पाते एक्टर – ट्रेन से उतारकर दी थी ‘शोले’ के वीरू को जिंदगी बदलने वाली सीख
मनोज कुमार थे वो जौहरी, जिन्हें हीरो की परख थी — दिलीप कुमार के फैन और धर्मेंद्र के करियर के असली सूत्रधार

पद्मश्री अभिनेता मनोज कुमार ना केवल एक उम्दा कलाकार थे, बल्कि शानदार निर्देशक, पटकथा लेखक और गीतकार भी थे। 24 जुलाई 1937 को पाकिस्तान के एबटाबाद में जन्मे मनोज कुमार का परिवार भारत-पाक बंटवारे के बाद दिल्ली आ गया, जहां उन्होंने अपना बचपन और पढ़ाई पूरी की। दिल्ली के हिंदू कॉलेज से आर्ट्स में स्नातक की डिग्री लेने के बाद मनोज कुमार ने फिल्मों में अपना भाग्य आजमाने का फैसला किया।
दिलीप कुमार से प्रभावित होकर ही उन्होंने एक्टिंग की ओर रुख किया और अपने पसंदीदा किरदार से प्रेरित होकर अपना नाम बदलकर ‘मनोज कुमार’ रख लिया। लेकिन उनके लिए बॉलीवुड का सफर आसान नहीं था। जब वे खुद संघर्ष कर रहे थे, तभी उनकी मुलाकात धर्मेंद्र से हुई। धीरे-धीरे दोनों में गहरी दोस्ती हो गई और साथ में कई उतार-चढ़ाव देखे।
दरअसल, मनोज कुमार ही वो इंसान हैं जिनकी वजह से धर्मेंद्र जैसे स्टार को इंडस्ट्री में टिके रहने की हिम्मत मिली। मनोरंजन जगत में पैर जमाना तब भी मुश्किल था और आज भी है। कई बार हालात इतने खराब हो जाते हैं कि लोग मायूस होकर घर लौटने का मन बना लेते हैं। कुछ ऐसा ही हुआ था धर्मेंद्र के साथ। जब वे मुंबई में संघर्ष के दिनों से गुजर रहे थे, भूखे-प्यासे कई दिन बिताने पड़े, तब उन्होंने हार मानकर पंजाब लौटने का फैसला कर लिया।
धर्मेंद्र ट्रेन में बैठ चुके थे और लौटने ही वाले थे कि मनोज कुमार को इसकी खबर मिली। वे तुरंत स्टेशन पहुंचे और दोस्त को वापस लौटने से रोका। उन्होंने धर्मेंद्र को समझाया कि संघर्ष का दौर हमेशा नहीं रहता, बस हिम्मत रखनी चाहिए। मनोज कुमार की बातों ने धर्मेंद्र का हौसला बढ़ाया और उन्होंने एक बार फिर कोशिश शुरू की।
इसका नतीजा ये हुआ कि 1960 में धर्मेंद्र को उनकी पहली फिल्म ‘दिल भी तेरा हम भी तेरे’ मिली। इसके बाद तो उन्होंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा और इंडस्ट्री को एक से बढ़कर एक सुपरहिट फिल्में दीं। आज अगर धर्मेंद्र को इंडस्ट्री में ही-मैन के तौर पर जाना जाता है, तो उसका श्रेय कहीं न कहीं मनोज कुमार की दोस्ती और समय पर दी गई सीख को भी जाता है।