छत्तीसगढ़रायपुर

महंगाई की दोहरी चोट: बाजार में गिरावट और घरेलू गैस सिलेंडर की बढ़ती कीमतों से बढ़ी आमजन की परेशानी

कीमतों में बढ़ोतरी से खाद्य सामग्री सहित अन्य जरूरी चीजें महंगी होंगी, जिसका सीधा असर व्यापारियों और आम जनता की जेब पर पड़ेगा।

रायपुर। राजधानी रायपुर में घरेलू गैस सिलेंडर की कीमतों में बढ़ोतरी और बाजार में आई गिरावट ने आम उपभोक्ताओं की चिंताओं को बढ़ा दिया है। लोगों का कहना है कि महंगाई अब जीवन का अहम हिस्सा बनती जा रही है, जिससे उनका बजट लगातार प्रभावित हो रहा है।

हाल ही में घरेलू गैस की कीमतों में स्थिरता से थोड़ी राहत जरूर मिली थी, लेकिन अब फिर से रसोई गैस सिलेंडर महंगा हो गया है। इसका असर खाने-पीने की चीजों सहित रोजमर्रा की अन्य आवश्यक वस्तुओं की कीमतों पर भी पड़ेगा। व्यापारियों की आय घटने से आर्थिक गतिविधियों में भी सुस्ती आ सकती है।

पेट्रोलियम एवं प्राकृतिक गैस मंत्रालय ने जानकारी दी है कि मंगलवार से उज्जवला योजना के तहत 14.2 किलोग्राम के गैस सिलेंडर की कीमत 500 से बढ़ाकर 550 रुपये कर दी गई है। वहीं, सामान्य उपभोक्ताओं के लिए यह 803 से बढ़कर 853 रुपये हो गई है। रायपुर में अब घरेलू सिलेंडर की कीमत 924 रुपये तक पहुंच गई है।

मध्यम वर्ग पर सबसे ज्यादा असर
बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि इस बढ़ोत्तरी का सीधा असर खासकर मध्यम वर्गीय और निम्न आय वर्ग के परिवारों पर पड़ेगा। गैस की कीमत बढ़ने से घरेलू बजट बिगड़ रहा है, वहीं दूसरी ओर बाजार में आई मंदी से व्यापारियों की बिक्री और आमदनी पर असर हो रहा है, जिससे पूरे सिस्टम पर आर्थिक दबाव बढ़ गया है।

जनता की पीड़ा और सुझाव
अशोका हाईट्स मोवा निवासी अदिति अग्रवाल का कहना है कि सरकारी नीतियों के तहत कीमतें घटती-बढ़ती रहती हैं, लेकिन जब चीजें महंगी हो जाती हैं, तो उनमें फिर गिरावट नहीं आती, जिससे आम जनता को लंबे समय तक परेशान होना पड़ता है। उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को ऐसी नीतियां बनानी चाहिए, जिससे कीमतों में संतुलन बना रहे।

स्वर्ण भूमि की रहने वाली रुचि लोनिया ने कहा कि महंगाई हर दिन बढ़ती जा रही है, जिससे लोगों को अपनी जरूरतों में कटौती करनी पड़ रही है। किचन का खर्च बढ़ने के साथ अब आम आदमी को अपनी बाकी जरूरतों पर भी समझौता करना पड़ रहा है।

निष्कर्ष:
महंगाई और आर्थिक सुस्ती की यह दोहरी मार अब आम जनजीवन पर साफ दिखने लगी है। घरेलू खर्चों में बढ़ोत्तरी और आय के सीमित साधनों के बीच जनता के लिए संतुलन बनाना बेहद मुश्किल होता जा रहा है।

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