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पोलावरम बांध को लेकर पीएम मोदी आज करेंगे 4 राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक, हजारों आदिवासी बसाहटों पर संकट मंडरा रहा है

पोलावरम बांध विवाद: छत्तीसगढ़, उड़िसा, आंध्रप्रदेश और तेलंगाना के बीच लंबित विवाद, सुकमा के हजारों दोरला आदिवासियों की बसाहट प्रभावित — समाधान के लिए आज पीएम मोदी की सभी मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक

रायपुर (पोलावरम बांध विवाद): गोदावरी नदी पर छत्तीसगढ़ और आंध्र प्रदेश की सीमा पर बन रहे पोलावरम बांध का असर प्रदेश के कई हिस्सों पर होगा, लेकिन इसका सबसे बड़ा प्रभाव सुकमा जिले पर पड़ेगा। यहां कोंटा सहित नौ गांवों में बसने वाले हजारों दोरला आदिवासियों की बसाहट खतरे में है।

इस समस्या के समाधान के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी 28 मई को दोपहर 3:30 बजे दिल्ली में बैठक करेंगे, जिसमें छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के मुख्यमंत्री शामिल होंगे।

चार साल पहले किए गए सर्वे के मुताबिक, यदि बांध का फुल रिजर्व लेवल (एफआरएल) 150 फीट रखा गया तो सुकमा के नौ गांवों की करीब 1390 हेक्टेयर जमीन, 282 मकान और 1500 लोगों की आबादी प्रभावित होगी। वहीं, यदि यह स्तर 177 फीट तक बढ़ाया गया, तो 12 गांवों की लगभग 2705 हेक्टेयर जमीन, 2519 मकान और करीब 14,000 लोग प्रभावित होंगे।

राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन की केंद्र सरकार की तीसरी बार सत्ता में आने और छत्तीसगढ़, ओडिशा, आंध्र प्रदेश में भाजपा व टीडीपी की सरकार बनने के बाद इस विवाद के समाधान की उम्मीद बढ़ गई है। यह पहली बार होगा जब प्रधानमंत्री सीधे चारों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर चर्चा करेंगे।

पोलावरम परियोजना अपने अंतिम चरण में है, और बांध में जल भराव भी शुरू हो चुका है। मानसून के दौरान गोदावरी नदी में आई बाढ़ के कारण इसका बैक वॉटर सुकमा जिले के कोंटा क्षेत्र और ओडिशा के मलकानगिरी जिले में डुबान पैदा करता है। इसके साथ ही सबरी और सिलेरू नदी के किनारे भी जलभराव होता है।

पिछले तीन साल से सुकमा जिले के कई गांव इस जलभराव से प्रभावित हो रहे हैं, और राष्ट्रीय राजमार्ग-30 भी बाढ़ के कारण कई बार बंद हो जाता है। पूर्व में विभिन्न सरकारों के बीच इस मुद्दे को लेकर मतभेद रहे, लेकिन अब राजनीतिक परिस्थितियों में बदलाव के साथ समाधान की उम्मीद जगी है।

छत्तीसगढ़ सरकार ने इस बैक वाटर प्रभाव का अध्ययन करने के लिए आईआईटी खड़गपुर को जिम्मा दिया है, जिसकी रिपोर्ट अगले महीने आने की संभावना है। अब 28 मई की बैठक में चारों राज्यों के बीच इस विवाद का स्थायी समाधान निकलने पर सबकी नजरें हैं।

डुबान क्षेत्र को लेकर विरोध भी जारी है। सुप्रीम कोर्ट के सितंबर 2022 के आदेश के बाद केंद्रीय जल आयोग ने अक्टूबर 2022 में बैठक बुलाई थी, जिसमें छत्तीसगढ़ और ओडिशा ने पांच प्रमुख मुद्दों पर आपत्ति जताई। छत्तीसगढ़ का कहना है कि जब तक डुबान क्षेत्र का सटीक निर्धारण नहीं हो जाता, तब तक कोई जमीन डूबान के लिए नहीं दी जाएगी। इस कारण अब तक जनसुनवाई भी नहीं हो पाई है।

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