महाभारत युग से जुड़ा है छत्तीसगढ़ के इस प्राचीन मंदिर का इतिहास, पांडवों ने की थी आराधना
Ancient Shiva Temple: स्थानीय निवासी और जानकार खेमू लाल के अनुसार, मंदिर के मुख्य गेट पर पांचों पांडवों के नाम अंकित हैं, जिससे इसकी प्राचीनता और ऐतिहासिक महत्व स्पष्ट होता है। पूर्वमुखी इस मंदिर में एक गर्भगृह और अंतराल है, जिसके ऊपर नागर लैटिना शिखर स्थित है। ये संरचनात्मक विशेषताएँ दर्शाती हैं कि मंदिर कभी भव्य मंडप से सुशोभित रहा होगा।

गंडई का प्राचीन शिव मंदिर: 11वीं सदी की ऐतिहासिक धरोहर, अद्भुत शिल्पकला का अनूठा उदाहरण
राजनांदगांव के गंडई में स्थित प्राचीन शिव मंदिर का निर्माण 11वीं सदी में कलचुरी राजाओं द्वारा कराया गया था। यह ऐतिहासिक मंदिर अपनी अनूठी वास्तुकला और शिल्पकला के लिए प्रसिद्ध है, जिसे देखने के लिए दूर-दूर से श्रद्धालु और इतिहास प्रेमी आते हैं। पुरातत्व विभाग ने इस मंदिर को संरक्षित किया है। यह मंदिर खैरागढ़-छुईखदान-गंडई जिले के नगर पंचायत क्षेत्र के मध्य स्थित है। इसकी खासियत यह है कि यह दो मंजिला संरचना में बना है, जहां निचले हिस्से में भगवान शिव विराजमान हैं, जबकि ऊपरी हिस्सा खाली पड़ा है और वहां पहुंचने के लिए कोई सीढ़ी या रास्ता नहीं है।
मंदिर की ऐतिहासिकता और वास्तुशिल्प
स्थानीय निवासी और जानकार खेमू लाल बताते हैं कि मंदिर के मुख्य द्वार पर पांचों पांडवों के नाम अंकित हैं, जिससे इसकी प्राचीनता का प्रमाण मिलता है। मंदिर पूर्वमुखी है और इसमें गर्भगृह तथा अंतराल स्थित हैं। इसके ऊपर नागर लैटिना शैली का शिखर निर्मित है, जो यह दर्शाता है कि मंदिर कभी भव्य मंडप से सुशोभित था। मंदिर के फर्श तक पहुंचने के लिए छह सीढ़ियां बनी हुई हैं, जबकि सामने की ओर की गई ढलाई की सजावट इस बात का संकेत देती है कि मंदिर का मंडप समय के साथ गिर चुका है।
सात रथ शैली में निर्मित मंदिर की विशिष्टताएँ
यह मंदिर सप्त-रथ शैली में निर्मित है और छह उप-पीठों (स्तरों) से बने जगती (मंच) पर स्थित है। इसके ऊपरी तीन उप-पीठों को हाथियों, घोड़ों, संगीतकारों और नर्तकियों की नक्काशी से सजाया गया है। इनमें से अंतिम पट्टिका आदिवासी संस्कृति को दर्शाती है, जिसे उनके वस्त्रों और आभूषणों से पहचाना जा सकता है। इसी पट्टिका में रामायण, वृक्ष-पूजा, नाग-पूजा और प्रेमी युगलों के दृश्य भी उकेरे गए हैं।
मंदिर की दक्षिण, पश्चिम और उत्तर भद्रा-आलों में अलग-अलग मूर्तियाँ स्थापित हैं। दक्षिण में निचले भद्रा आले में भैरव की प्रतिमा, पश्चिम में एक सती-स्तंभ, और उत्तर में महिषासुरमर्दिनी की प्रतिमा स्थित है। अन्य देवताओं में नरसिंह, वराह और विष्णु की प्रतिमाएँ भी पश्चिम दिशा में स्थापित हैं।
प्राचीन नक्काशी और धार्मिक महत्व
मंदिर की दीवारों और स्तंभों पर बेहद खूबसूरत नक्काशी की गई है, जिसमें महाभारत, रामायण और कृष्णकालीन घटनाओं को पत्थरों पर उकेरा गया है। मुख्य द्वार की नक्काशी अद्भुत है और इसमें पांडवों को भगवान शिव के नंदी की पूजा करते हुए दिखाया गया है। मंदिर को चारों ओर से खुला रखा गया है, जिससे इसकी भव्यता और प्रभाव बढ़ जाता है। यहां की नक्काशी इतनी उत्कृष्ट है कि इसे देखने वाले मंत्रमुग्ध हो जाते हैं।
यह प्राचीन शिव मंदिर न केवल धार्मिक आस्था का केंद्र है, बल्कि ऐतिहासिक और स्थापत्य कला की दृष्टि से भी अत्यंत महत्वपूर्ण धरोहर है।