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होली में बिगड़ सकता है वात, पित्त और कफ, आयुर्वेदिक डॉक्टर से जानें सेहतमंद रहने के उपाय

आयुर्वेद के अनुसार, शरीर में वात, पित्त और कफ का संतुलन स्वस्थ रहने की निशानी है, लेकिन होली के दौरान विशेष पकवानों के सेवन से यह संतुलन प्रभावित हो सकता है।

होली का त्योहार सिर्फ रंगों और उमंग का ही नहीं, बल्कि स्वादिष्ट पकवानों का भी उत्सव होता है। इस दिन लोग गुजिया, मालपुआ, दही बड़े और लस्सी जैसे लजीज व्यंजनों का आनंद लेते हैं। हालांकि, ये पकवान जितने स्वादिष्ट होते हैं, सेहत के लिए उतने ही नुकसानदायक भी साबित हो सकते हैं। आयुर्वेद के अनुसार, स्वस्थ शरीर का संकेत वात, पित्त और कफ दोषों का संतुलन होता है, लेकिन होली के दौरान विशेष पकवानों के अधिक सेवन से यह संतुलन बिगड़ सकता है।

वात-पित्त असंतुलन क्या है?
आयुर्वेद विशेषज्ञ डॉ. चंचल शर्मा बताती हैं कि होली के बाद शरीर पर इन पकवानों का असर दिखने लगता है। ठंडाई, लस्सी और मेवे जैसी चीजों के अधिक सेवन से वात दोष बढ़ सकता है, जबकि मसालेदार और तले-भुने खाद्य पदार्थ जैसे मालपुआ और गुजिया पित्त दोष को बढ़ाते हैं। इन असंतुलनों के कारण सुस्ती, अपच, एसिडिटी और पेट दर्द जैसी समस्याएं हो सकती हैं।

होली के बाद दोषों के प्रभाव से कैसे बचें?
मसालेदार और तले-भुने खाद्य पदार्थों का अधिक सेवन वात दोष को बढ़ाता है, इसलिए इनका संतुलित मात्रा में ही सेवन करें। खाने के तुरंत बाद पर्याप्त मात्रा में पानी पीना कफ दोष को नियंत्रित रखता है। साथ ही, हल्का भोजन जैसे दही, लस्सी और हर्बल ड्रिंक्स को अपनी डाइट में शामिल करें, क्योंकि ये दोषों को संतुलित रखने में सहायक होते हैं। इन छोटी-छोटी सावधानियों को अपनाकर आप होली के आनंद को कम किए बिना अपने स्वास्थ्य का ध्यान रख सकते हैं।

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