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गृहस्थ होकर भी वैरागी होना एवं मन पर विजय पाना श्रीकृष्ण से सीखो : मनीष सागरजी महाराज

वैराग्य और अभ्यास के द्वारा जीता जा सकता है मन को

रायपुर।  परम पूज्य उपाध्याय भगवंत युवा मनीषी श्री मनीष सागरजी महाराज ने आज धर्मसभा में श्रीकृष्ण के जीवन से श्रावक और श्राविकाओं को स्वयं पर नियंत्रण करने की सीख दी। टैगोर नगर स्थित पटवा भवन में जारी चातुर्मासिक प्रवचनमाला में जन्माष्टमी के अवसर पर उपाध्याय भगवंत ने कहा कि श्रीकृष्ण ने गृहस्थ जीवन की साधना जगत को दिखाई। 32 हजार रानियों के बीच में रहकर गृहस्थ जीवन में कोई पुरुष अनासक्त कहलाए, यह उदाहरण बहुत मुश्किल है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि कुरुक्षेत्र की महाभारत में श्रीकृष्ण चाहते तो अकेले ही कौरवों का संहार कर सकते थे। उन्होंने कुरुक्षेत्र में रहकर भी शस्त्र नहीं उठाए। यह एक साधक ही कर सकता है। वैराग्य और अभ्यास के द्वारा ही मन को जीता जा सकता है। ये संदेश श्रीकृष्ण महाराज ने जगत को दिया। युद्ध के मैदान में जब अपनों को देखकर अर्जुन थम गए तो श्रीकृष्ण ने मन से राग हटाकर मन पर नियंत्रण करने की सीख दी।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि हमारा खुद पर नियंत्रण बहुत कमजोर है। कोई अपशब्द कह दे तो उसे तुरंत कह देंगे। कोई थप्पड़ मार दे तो तुरंत पलटवार कर देते हैं। श्रीकृष्ण का स्व-नियंत्रण कितना बड़ा था। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण युद्ध की ना सोचकर पहले खुद शांति दूत बनकर गए थे। जन्म से श्रीकृष्ण ने संघर्ष ही देखा था। वे शांति दूत बनकर गए। उनकी एक और बड़ी विशेषता थी कि उनके चेहरे पर सदा मुस्कान रहती थी। वहीं स्थिति बदलते ही हमारी मुस्कान चली जाती है। सही व्यक्ति वही है जिसकी हर परिस्थिति में मुस्कान बनी रहती है।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि श्रीकृष्ण के जीवन की एक और बड़ी विशेषता थी। जब तक व्यक्ति को कुछ नहीं मिलता तो अभाव में जीता है। जैसे मिलता है तो भोगने की इच्छा होती है। श्रीकृष्ण को बचपन से अभाव मिले थे। बड़े हुए तो पुण्य की लीला मिली। उनके जीवन की विशेषता सदैव अनासक्ति की रही।

आसक्ति के निमितों में रहकर भी अनासक्त रहना बहुत बड़ी साधना है। अनासक्ति की साधना वस्तु का उपयोग करो लेकिन उपभोग मत करो। आवश्यकता की पूर्ति करो लेकिन आसक्ति मत करो।

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि श्रीकृष्ण का जीवन मन पर विजय पाने का संदेश देता है। युद्ध के मैदान में सबसे अधिक तनाव सारथी को होता है। महाभारत के युद्ध में श्रीकृष्ण अर्जुन के सारथी बने। निहत्था होने के बाद भी तनाव नहीं रहा। कुरुक्षेत्र के अशांत वातावरण में भी उन्होंने धर्म का उपदेश दिया।अर्जुन के भीतर के राग को तोड़ा। हम भी सदैव सत्य को जानने का प्रयास करें। मत प्रेमी से सत्य प्रेमी बने। देव, गुरु और धर्म मताग्रह करने के लिए नहीं है। इनके माध्यम से सत्य तक पहुंचे। 

उपाध्याय भगवंत ने कहा कि श्रीकृष्ण महाराज का जन्म जेल में हुआ था। उन्होंने अपने जन्म से ही पीड़ा देखी। उनका जीवन संदेश देता है कि जीवन एक संघर्ष है इस संघर्ष में हिम्मत नहीं हारना है। अपना मार्ग निकालते जाना है। श्रीकृष्ण के जीवन के संघर्ष से हमारे जीवन की तुलना करें तो कुछ भी नहीं है। फिर भी हम जिंदगी से कितनी शिकायत करते हैं। सच्चा सुख इस संसार में संयम व आत्मबल में है। झूठे सुख में जीने वाले बहुत हैं। सच्चे सुख में जीने वाले के पास जब आत्मबल आ जाता है वही सुख है।

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