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संघर्षों को दी मात: बस्तर की दिव्यांग बेटी आर्चिशा महांती ने भरी ‘अमेजन’ की उड़ान, बनीं सबके लिए प्रेरणा

मस्कुलर डिस्ट्रोफी से जूझते हुए भी कभी हार न मानने वाली आर्चिशा महांती ने बीएम में गोल्ड मेडल प्राप्त किया, आईआईएम रायपुर से एमबीए किया और अब अमेजन कंपनी में शानदार पैकेज के साथ सफलता की नई ऊंचाइयां छुई हैं।

रायपुर: आईआईएम रायपुर के 14वें दीक्षा समारोह के दौरान एक खास क्षण आया जब बस्तर की बेटी आर्चिशा महांती को उनके असाधारण दृढ़ संकल्प और शैक्षणिक उत्कृष्टता के लिए ‘लेटर ऑफ एप्रिसिएशन’ से सम्मानित किया गया। पूरे सभागार में तालियों की गड़गड़ाहट गूंज उठी, क्योंकि आर्चिशा ने अपनी कड़ी मेहनत और संघर्ष से ‘अमेजन’ जैसी प्रतिष्ठित कंपनी में जगह बनाई है।

संघर्ष और प्रेरणा की कहानी
आर्चिशा महांती, जो मस्कुलर डिस्ट्रोफी नामक गंभीर बीमारी से नौंवी कक्षा से जूझ रही थीं, ने कभी हार नहीं मानी और सफलता की ऊंचाइयों को छुआ। बचपन में उनकी जिंदगी सामान्य बच्चों जैसी थी, लेकिन जैसे-जैसे वह बड़ी हुईं, उन्हें चलने-फिरने में दिक्कत होने लगी और शरीर में कमजोरी महसूस होने लगी। आठवीं कक्षा के बाद मस्कुलर डिस्ट्रोफी का पता चला।

दीक्षा समारोह में जब आर्चिशा ने मंच पर मेडल प्राप्त किया, तो दर्शक दीर्घा में बैठे सभी लोग खड़े होकर उनके संघर्ष और जज्बे को सलाम करते हुए तालियां बजाने लगे। आर्चिशा ने बताया कि नौंवी कक्षा के बाद उनकी मुश्किलें बढ़ने लगीं, लेकिन उन्होंने इसे अपने रास्ते का हिस्सा मानते हुए दसवीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की और बोर्ड परीक्षा में 86% अंक हासिल किए।

बीएससी छोड़कर बीए में गोल्ड मेडल
आर्चिशा ने बताया कि 11वीं कक्षा में उन्हें सीढ़ियां चढ़ने में भी परेशानी होने लगी, जिसके कारण स्कूल प्रबंधन ने उनके लिए नीचे कक्षा लगवाई। तमाम कठिनाइयों के बावजूद अपने माता-पिता के अडिग समर्थन से उन्होंने 12वीं बोर्ड की परीक्षा 72 प्रतिशत अंकों के साथ उत्तीर्ण की। इसके बाद, कॉलेज में विज्ञान स्ट्रीम में दाखिला लिया, लेकिन प्रैक्टिकल परीक्षाओं में दिक्कतों के कारण उन्होंने बीएससी छोड़कर बीए में प्रवेश लिया। बीए में उन्होंने बस्तर विश्वविद्यालय से गोल्ड मेडल हासिल किया।

पिता के साथ कॉलेज का सफर
आईआईएम में प्रवेश के दौरान आर्चिशा के माता-पिता, सुकांत कुमार महांती और बैजयंती माला महांती, दोनों ही सेवानिवृत्त हो गए थे। आर्चिशा की पढ़ाई के लिए वे जगदलपुर से रायपुर शिफ्ट हो गए। उनके पिता रोजाना सुबह उन्हें कॉलेज ले जाते थे और पूरे दिन वहीं रहते थे। पहले साल की पढ़ाई पूरी करने के बाद, आर्चिशा ने समर इंटर्नशिप के लिए इंटरव्यू दिया, जिसमें उनका चयन अमेजन में हो गया।

आर्चिशा की सफलता उनकी कठिनाईयों और संघर्षों के बावजूद उनके दृढ़ संकल्प की मिसाल पेश करती है, और उन्होंने यह साबित किया कि मेहनत और समर्पण से कोई भी मंजिल हासिल की जा सकती है।

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