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अगर ग्रुप में एक व्यक्ति दुष्कर्म करता है और बाकी उसका सहयोग करते हैं, तो सभी माने जाएंगे गैंगरेप के दोषी — छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट का अहम फैसला।

बहुचर्चित सूरजपुर गैंगरेप मामले में छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के फैसले में आंशिक संशोधन करते हुए उसे कायम रखा। कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की गवाही, गर्भधारण और बच्चे का जन्म घटना को सिद्ध करते हैं — सिर्फ वीडियो का न मिलना या डीएनए रिपोर्ट का मेल न खाना दोषियों को बरी नहीं कर सकता।

बिलासपुर: छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने सूरजपुर जिले के बहुचर्चित गैंगरेप मामले में सुनवाई करते हुए ट्रायल कोर्ट के फैसले में आंशिक संशोधन किया है। कोर्ट ने पांच आरोपियों को पॉक्सो, एससी/एसटी एक्ट और आईटी एक्ट के आरोपों से दोषमुक्त कर दिया, लेकिन भारतीय दंड संहिता (IPC) की गंभीर धाराओं के तहत दी गई सजा को बरकरार रखा।

हाई कोर्ट ने कहा कि पीड़िता की स्पष्ट, सुसंगत और चिकित्सकीय रूप से पुष्ट गवाही, उसका गर्भवती होना और बच्चे का जन्म होना घटना की पुष्टि करता है। केवल वीडियो साक्ष्य की अनुपस्थिति या डीएनए रिपोर्ट का मेल न खाना आरोपियों को आरोपों से मुक्त करने के लिए पर्याप्त नहीं है। कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि यदि किसी समूह में एक व्यक्ति दुष्कर्म करता है और अन्य उसकी मंशा में शामिल रहते हैं या उसका साथ देते हैं, तो सभी को दुष्कर्म का दोषी माना जाएगा।

पीड़िता की उम्र 18 साल से कम सिद्ध नहीं हो सकी और जाति प्रमाण पत्र घटना के 10 महीने बाद जारी हुआ, इसलिए कोर्ट ने पॉक्सो और एससी/एसटी एक्ट के तहत सजा रद्द कर दी। वहीं, आईटी एक्ट की धारा हटाने का कारण यह रहा कि आरोपियों के मोबाइल से कोई आपत्तिजनक वीडियो बरामद नहीं हुआ।

डीएनए परीक्षण में बच्चे के पिता के रूप में किसी भी आरोपी की पुष्टि नहीं हुई, लेकिन कोर्ट ने इसे अपराध से मुक्ति का आधार मानने से इनकार कर दिया। कोर्ट ने दोहराया कि यदि समूह में एक व्यक्ति दुष्कर्म करता है और बाकी उसका समर्थन करते हैं, तो सभी दोषी माने जाएंगे।

घटना 19 दिसंबर 2021 की है, जब मासूक रज़ा ने पीड़िता को सुनसान जगह बुलाया, जहां पहले से मौजूद चार अन्य आरोपियों—अब्बू बकर उर्फ मोंटी, अशरफ अली उर्फ छोटू, मोहित कुमार और विनीत कुमार—ने सामूहिक दुष्कर्म किया। आरोपियों ने वीडियो बनाने की धमकी दी और बाद में जनवरी-फरवरी 2022 में भी अलग-अलग स्थानों पर दुष्कर्म की घटनाएं हुईं। डर के कारण पीड़िता ने शुरुआत में किसी को कुछ नहीं बताया, लेकिन गर्भवती होने के बाद परिजनों को जानकारी दी और पुलिस में शिकायत दर्ज कराई।

20 दिसंबर 2023 को सूरजपुर की विशेष अदालत ने सभी आरोपियों को दोषी ठहराते हुए IPC की विभिन्न धाराओं, पॉक्सो, एससी/एसटी और आईटी एक्ट के तहत 4 से 20 साल तक की सजा सुनाई थी। इसके खिलाफ आरोपियों ने हाई कोर्ट में अपील की थी, जिस पर अब यह फैसला सुनाया गया है। मुख्य न्यायाधीश रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति रजनी दुबे की खंडपीठ ने यह निर्णय पारित किया।

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